परमेश्वर के वचनों के प्रति इंसान का जो रवैया होना चाहिए

1
मैं जो वचन कहता हूँ वे सत्य हैं
और समूची मानवजाति के लिए हैं;
केवल किसी विशिष्ट या खास किस्म के
व्यक्ति के लिए नहीं हैं।
केवल किसी विशिष्ट या खास किस्म के
व्यक्ति के लिए नहीं हैं।
इसलिए, तुम लोगों को मेरे वचनों को सत्य के नजरिए से
समझने पर ध्यान देना चाहिए
और पूरी एकाग्रता एवं ईमानदारी की प्रवृत्ति रखनी चाहिए।
2
मेरे द्वारा बोले गए एक भी वचन
और सत्य की उपेक्षा मत करो,
और उन्हें हल्के में मत लो, उन्हें हल्के में मत लो।
मैं देखता हूँ कि तुम लोगों ने अपने जीवन में
ऐसा बहुत कुछ किया है जो सत्य से संबंधित नहीं है,
इसलिए मैं तुम लोगों से खास तौर से सत्य के सेवक बनने,
दुष्टता और कुरूपता का दास न बनने के लिए कह रहा हूँ।
सत्य को मत कुचलो और
परमेश्वर के घर के किसी भी कोने को दूषित मत करो।
तुम लोगों के लिए यह मेरी चेतावनी है।
तुम लोगों के लिए यह मेरी चेतावनी है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ